रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है तथा कब मनाई जाती है। – आपने तो जगन्नाथ पुरी में होने वाली रथ यात्रा के बारे में तो जरुर सुना ही होगा। आज यह कहानी में पूरी तरह से आपको बताया जाएगा की रथ यात्रा क्यों मनाते हैं । तथा कब मनाते हैं । तथा इसके मनाने के पीछे क्या कहानी प्रचलित है । तथा किसके लिए मनाई जाती है। तथा इसके मनाने का क्या महत्व है । इससे जुड़े सारी छोटी बड़ी सभी जानकारी को विस्तार से समझाया जाएगा । इस आर्टिकल को पूरी तरह से पढ़ें क्योंकि इस आर्टिकल के लास्ट में जो बात बताया गया है। वह काफी आचार्य चकित करने वाली है । जो आपकी आंखें खोल कर रख देगी।
रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है तथा कब मनाई जाती है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा मानाये जाने के पीछे बहुत पुरानी कथा है । शास्त्रों के अनुसार रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होती है । इस महीने रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 को मनाया जाएगा रथ यात्रा मनाए जाने के पीछे सदियों पुराना इतिहास है । कि राजा इंद्र धुमन जो सभी परिवार के साथ नीलांचल सागर के पास रहते थे । जो की उड़ीसा में है । उन्हें समुद्र में एक विशालकाय लकड़ी दिखा राजा उसे लकड़ी से भगवान की मूर्ति बनाना चाहते थे। राजा के मन में यह विचार आया कि इस सुंदर लकड़ी से जगदीश कि मूर्ति बनाया जाए।
वैसे ही बूढ़े के रूप में विश्वकर्मा जी प्रस्तुत हो गए । उन्होंने मूर्ति बनाने के लिए एक शर्त रखी कि मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊंगा। उसे मूर्ति को पूरी तरह से बन न जाए तब तक कोई घर में नहीं आएगा । राजा ने इसे मान लिया आज जिस जगह पर श्री जगन्नाथ जी का मंदिर है । उसी के पास एक घर के अंदर वह मूर्ति निर्माण में लग गए राजा के परिवार जनों को यह नहीं मालूम था। कि वह बूढ़ा बढ़ई कौन है । कई दिनों तक घर का द्वार बंद रहने पर महारानी ने सोचा कि बिना खाए पिए वह बढ़ई कैसे काम कर सकेगा । बढ़ई उसे कहते हैं । जो लकड़ी का काम करता।
महारानी ने सोचा कि क्या वह बढ़ई अभी तक जीवित होगा I या मर गया होगा I महाराजा ने द्वारा दरवाजा खुलवाने पर बढ़ई कहीं नहीं मिला I लेकिन उसके द्वारा अर्ध निर्मित श्री जगन्नाथ सुभद्रा तथा बलराम की मूर्तियां वहां पर मिली I महाराजा और महारानी दुखी हो उठे I लेकिन उसी छन दोनों ने आकाशवाणी सुनी व्यर्थ में दुखी मत हो हम इसी रूप में रहना चाहते हैं I मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो आज भी वैवपूर्ण स्थापित करवा दो स्पष्ट मूर्तियाँ पुरुषोत्तम की रथ यात्रा और मंदिर में सुशोभित वह प्रतिष्ठित है I रथ यात्रा माता सुभद्रा के द्वारा की भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने की उद्देश्य से श्री कृष्णा और बलराम ने अलग अलग रथों में बैठकर करवाई थी I माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में यह रथ यात्रा पूरी में हर वर्ष होती है I उड़ीसा की पूरी की रथ यात्रा सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है I पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का वैकुंठ कहा गया है I वर्मा और स्कंद पुराण के अनुसार पूरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नील माधव के रूप में अवतार लिया था I वह यहां सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए
वजह से यहां भगवान जगन्नाथ का रूप में कबलाई देवताओं की तरह हैं I उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर की महिमा देश में ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है I भगवान जगन्नाथ क रथ यात्रा के लिए बलराम श्री कृष्णा और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग निर्मित किए जाते हैं I रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ है I उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण का रथ होता है I इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है I पूरी में बना जगन्नाथ मंदिर भारत में हिंदुओं के चार धामों में से एक है I यह दम तकरीबन 800 सालों से भी ज्यादा पुराना माना जाता है I भगवान जगन्नाथ का नदी को रक्त 45.6 फीट ऊंचा बलराम जी का तालाब ध्वजरत 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्प दलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है I
मैं जो आपको चमत्कारिक बातें बताने जा रहा हूं I यह सुनकर आप हैरान हो जाएंगे I अब मैं आपको वह बातें बताता हूं I दोस्तों जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहरता है I इसी मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है I इस चक्कर को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है I की चक्कर का मुह आपकी तरफ है I मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं I यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है I इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है I फिर नीचे की तरफ से एक-एक के बाद एक प्रसाद पकता रहता है I
मंदिर के सिंह द्वारा से पहला कदम अंदर रखने पर ही आप समुद्र की लहरे की आने वाली आवाज को नहीं सुन सकते है I आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है I की जैसी आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे I वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देने लगती है I यह अनुभव शाम के समय और भी अलौकिक लगता है I हमने ज्यादातर मंदिरों को शिकार पक्षी बैठे और उड़ते देखें जगन्नाथ मंदिर की यह बात आपको चौक देगी I इसके ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता है I यहां तक की कोई हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी काम नहीं पड़ता साथ ही मंदिर पर पट बंद होती ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है I उनकी किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती I एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है I ऐसी मान्यता है I कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदल गया I तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा I आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की तरफ चलती है I यह प्रक्रिया उल्टी है तो आपको इस आर्टिकल में रथ यात्रा के बारे में जानकारी कैसे लगे I
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